जन्म,जरा और मृत्यु ये जीवन के शाश्वत है.
जीव जब जन्म लेता है तो जीवन के कई सोपान उसे चढ़ने होते है,अनेकानेक संभावनाओं और अकथित भविष्य के सोपान....
जीवन कि इस उत्तरोत्तर यात्रा में एक पड़ाव यौवन आता है. कई सपने,आकांक्षाएँ, आशाएँ,उपलिब्धयाँ,आदि आदि अल्पविरामो को लिए,जहाँ से फासला तय करते-करते जीव जरा अवस्था तक आ जाता है परंतु उसकी आकांक्षाओं के अल्पविराम कभी भी पूर्णविराम में नहीं बदल पाते और वह एक विस्मय-भरे लोक में लौट जाता है जिसे हम मृत्यु कहते है.
एक पुंर्नविश्वास के साथ जिसे हम पुर्न्जन्म कहते है. मेरी यह सांकेतिक रचना जीवन क संपूर्ण सार कुछ संकेतों में व्यक्त करती है.
Birth, old age and death are perpetual of life. When a life comes into existence it goes through many phases.
Multiple phases of possibilities and unknown future. During this journey there is a mile stone called youth which is marked by dreams, desires, hopes, achievements etc. etc. These are commas (,) travelling through them life comes to another stage called old age, but these commas never morphed into full stops. But returns into a territory marked by exclamation which you all call death. Through a faith we called rebirth. This is a symbolic creation of essence of life.